Champawat History in Hindi: Champawat
चंपावत जिला उत्तराखंड राज्य में स्थित है चंपावत जिले का नाम राजकुमारी चंपावती के कारण पड़ा है चंपावती राजा अर्जुन देव की पुत्री थी उनके द्वारा यहां पर शासन किया गया और उनकी राजधानी चंपावत में थी लोक कथाओं में वर्णन मिलता है कि महाभारत काल में इस क्षेत्र में द्वापर युग के समय पांडव यहां रहते थे
यहां पर देखने को मिलता है कि हिडिम्बा घटोत्कच मंदिर एवं चंपावत शहर के तारकेश्वर मंदिर देवीधुरा के वाराही मंदिर सिप्ति के सप्तेश्वर मंदिर महाभारत काल से यहाँ पर है यह क्षेत्र परंपरागत रूप से असुरों एवं देवताओं से जुड़ा हुआ है और तपस्वियों के लिए तपस्या स्थली भी रही है
इस जिले का क्षेत्र हिमालय के मध्य में स्थित है इसे स्कंद पुराण में मानस खंड के नाम से भी जाना जाता है हिमालय क्षेत्र के पांच भागों में से चंपावत जिला एक है इस क्षेत्र को अलग-अलग समय में अलग-अलग नामों से भी जाना गया जैसे कालिंदी, कुर्मांचल, खस देश एवं कुर्मावन
उत्तराखंड के पूर्वी भाग में स्थित चंपावत एक नगर के साथ-साथ एक जिला भी है चंपावत अपने धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व के साथ में अपने प्रसिद्ध स्थलों के लिए अधिक जाना जाता है इनमें सबसे लोकप्रिय बालेश्वर मंदिर है इसके साथ साथ पूर्णागिरी मंदिर लोहाघाट देवीधुरा के लिए भी जाना जाता है
चंपावत में ऊंची ऊंची पर्वत मालाएं एवं गहरी खाईयों एवं नदियों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है यह सारी नदियां यहां से निकलकर पंचेश्वर में स्थित काली नदी मैं जाकर मिल जाती हैं चंपावत की समुद्र तल से ऊंचाई 1615 मीटर के आसपास है चंपावत जिला पिथौरागढ़ एवं बागेश्वर से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित है
अगर चंपावत के क्षेत्रफल की बात करें तो 1766 किलोमीटर है इसी कारण यह उत्तराखंड का सबसे छोटा जिला है प्राचीन काल में इस जगह को कालिकुमाऊं के नाम से जानते थे परंतु जब चंद वंश का शासन था उस समय इस जगह का नाम चंपावत रखा गया था चंपावत का नाम चंपावत क्यों पड़ा इसके लिए इसमें दो तथ्यों का उदाहरण दिया जाता है
जिस समय काली कुमाऊं पर कत्यूरी राजाओं का शासन था उस समय वहां के राजा ब्रह्मदेव थे उन्होंने अपनी इकलौती पुत्री चंपा का विवाह सोमचंद के साथ करवा दिया उस समय उन्होंने सोमचंद को 15 बीघा जमीन दान में दी थी|
यहां रहकर उन्होंने रानी चंपा के नाम पर इस जगह का नाम चंपावत रखा यही कुछ लोग इसमें अपना तर्क देते हैं कि नागों की बहन चंपावती के नाम पर इस जगह का नाम चम्पावत रखा गया जगह के पीछे कारण जो भी रहा हो लेकिन इस जगह का नाम रानी चंपा के नाम से ही चंपावत रखा गया
चंपावत महाभारत युद्ध के बाद कुछ समय के लिए हस्तिनापुर के राजा के अधीन भी रहा लेकिन वास्तविक शासक यहां के स्थानीय लोग ही थे जिनमें कुणिंद शासक थे इसके बाद नाग जाति ने यहां पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया यहां पर शताब्दियों तक कई स्थानीय राजाओं ने शासन किया जिले में खस एवं कुणिंद शामिल थे
चौथी एवं पांचवी शताब्दी के दौरान इस क्षेत्र पर नंद राजाओं ने शासन किया जो मगध के थे चंपावत जिले में सर्वप्रथम प्राप्त हुए सिक्कों पर कुणिंद शासकों का नाम पाया गया प्रथम सदी के आखिरी तिमाही के समय कुषाण साम्राज्य पश्चिमी एवं मध्य हिमालय के ऊपर तक विस्तार कर चुके थे परंतु वही तीसरी सदी के दूसरी तिमाही मैं कुषाणों का साम्राज्य बिखर चुका था
जब कत्यूरी शासकों का पतन हो गया उसके बाद चंद राजपूतों ने एक नियम लगाकर पूरे कुमाऊं को एक साथ लाने में सफलता हासिल की इस कारण चंद्रवंशी राजपूत राजकुमार सोम चंद ने किले का नामकरण राजबुंगा रखा था उसके बाद इसे बाद में चंपावत नाम दिया गया उसके बाद 1725 तक चंद शासको ने राज किया जिनमे देवीचंद आखिरी राजा थे
राजा की मृत्यु के बाद दो गैड़ा बिष्ट ने राज्य पर पूरा नियंत्रण हासिल कर लिया उसके बाद पुरे कुमाऊ पर 2 दिसंबर 1815 को ब्रिटिश शासन का अधिकार हो गया उसके बाद यहाँ के लोगो ने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के वार्षिक सत्र में भाग लिया और उसके बाद 15 अगस्त 1947 को इस भाग को देश के साथ ब्रिटिश राज से स्वतन्त्र घोषित कर दिया गया
ब्रिटिश काल के समय चंपावत को जिले का दर्जा मिल चुका था उससे पहले चंपावत अल्मोड़ा का एक हिस्सा हुआ करता था उसके बाद यह पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत आ गया उसके बाद चंपावत की भौगोलिक परिस्थिति को समझते हुए यहां का विकास करने के लिए एवं शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ोतरी करने के लिए उत्तर प्रदेश की उस समय की मुख्यमंत्री मायावती ने चंपावत को जिले का दर्जा दिया और 15 सितंबर 1997 चंपावत उत्तराखंड का नए जिले के रूप में उभर कर सामने आया
चंपावत को यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है जिनमें क्रांतेस्वर मंदिर बहुत खास मानी जाती है क्योंकि इस मंदिर में भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लिया था इसके साथ चंपावत का बालेश्वर मंदिर बहुत खास है इसका निर्माण कत्यूरी राजाओं द्वारा किया गया था यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है इस मंदिर की वास्तुकला एवं शिल्प कला बहुत पुरानी है
चंपावत से 72 किलोमीटर की दूरी पर मीठा रीठा साहिब है यहां पर गुरु नानक देव जी आए थे तो उन्होंने एक रीठे के पेड़ को स्पर्श कर दिया था जिसके कारण उस रीठे के पेड़ पे जो दाने लगे हुए थे वह मीठे होने लगे इसी कारण इस जगह का नाम मीठा रीठा साहिब पड़ा
अगर आप यहां से दूसरी जगह घूमने जाना चाहते हैं तो आप लोहाघाट जा सकते हैं जो चंपावत जिले की नगर पंचायत है लोहाघाट में देवदार के जंगल पाए जाते हैं जिसके कारण यह लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है लोहाघाट में ही भी प्रतिवर्ष बग्वाल की लड़ाई का आयोजन होता है यह आयोजन रक्षाबंधन के समय देवीधुरा में आयोजित होता है
पी बेरन ने जब नैनीताल की खोज की थी उस समय उन्होंने कहा था कि लोहाघाट प्रकृति का स्वर्ग है लोहा नदी बहने के कारण इस जगह का नाम लोहाघाट रखा गया चंपावत में धार्मिक ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थान बहुत अधिक है अगर आप चंपावत आते हैं तो इन स्थानों में जरूर जाएं मीठा रीठा साहिब, पंचेश्वर महादेव मंदिर, आदि गुरु गोरखनाथ की धूनी, बाणासुर का किला, श्यामलाताल ,मायावती अद्वैत आश्रम, लोहाघाट, एवटमाउंट, पूर्णागिरी मंदिर, वाराही मंदिर|
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