Badrinath: Badrinath Temple History
Badrinath: Badrinath Temple History

Badrinath: Badrinath Temple History

Badrinath
Badrinath

 

बदरीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है चमोली जिले में ही भगवान विष्णु के पांचो बद्री स्थित है  ,आदिबद्री, भविष्यबद्री, वृद्धबद्री, योगध्यानबद्री, भारत में चार धामों में बद्रीनाथ धाम एक है बदरीनाथ धाम से हरिद्वार की दूरी लगभग 384 किलोमीटर है वहीं अगर जोशीमठ से बद्रीनाथ की दूरी लगभग 51 किलोमीटर है पुराणों में बद्रीनाथ को मुक्ति प्रदा , लोग सिद्धा, बद्रिकाश्रम, नर नारायण आश्रम आदि नामों से जाना जाता है
 बद्रीनाथ धाम की समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई है बद्रीनाथ धाम में नीलकंठ पर्वत शिखर जो अत्यधिक ऊंचाई पर है उसकी भव्यता वहां जाने पर ही दिखाई देती है यह पर्वत अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित है बद्रीनाथ में पहले जंगली बद्रीयों का विशाल जंगल हुआ करता था जिसके कारण इसे बद्री वन भी कहा जाता है
 बद्रीनाथ मंदिर के समीप अलकनंदा नदी के तट पर गर्म चल के कुंड बने हुए हैं इस कुंड को तप्त कुंड के नाम से जाना जाता है इस कुंड में गर्म जल आने के कारण सभी पर्यटक यहां स्नान करते हैं यहां स्नान करने से शरीर में स्फूर्ति आ जाती है बद्रीनाथ धाम में जो पुजारी हैं वह दक्षिण भारत में स्थित मालाबार क्षेत्र के आदि शंकराचार्य के वंशजों में से एक होते हैं इनको रावल के नाम से जाना जाता है
बद्रीनाथ मंदिर को तीन भागों में विभाजित किया गया है सिहंदवार ,मंडल एवं गर्भगृह मुख्य मूर्ति के समीप नर नारायण की प्रतिमा स्थापित है एवं दाहिनी और कुबेर की और भाई और नारद की प्रतिमाएं स्थापित है इस मंदिर के निर्माण की बात करें तो यह मंदिर गढ़वाल वंश के प्रारंभिक राजा अजय पाल के शासनकाल में इसका निर्माण कार्य हुआ लेकिन उसके बाद भव्य मंदिर बनाने का श्रेय कत्यूरी राजवंश को जाता है

भगवान बद्रीनाथ की कथा
Story of Lord Badrinath

भगवान बद्रीनाथ की पौराणिक कथा पुराणों के अनुसार जहां पर भगवान बद्रीनाथ की मंदिर है  यह स्थान भगवान शिव का था और बाद में यह भगवान विष्णु का निवास स्थान बन गया इस पर कथा आती  है कि भगवान विष्णु जब बद्रीनाथ आए तो वह भगवान शिव का निवास स्थान था|
 भगवान भोलेनाथ यहां पर अपने परिवार सहित निवास करते थे जब एक दिन भगवान नारायण ध्यान करने के लिए किसी एक स्थान की खोज में निकले तो उन्हें भगवान भोलेनाथ का स्थान दिखाई दिया वह यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर मोहित हो गए लेकिन भगवान विष्णु जानते थे कि यह तो उनके आराध्य भगवान शिव का स्थान है|
 इस अवस्था में वह यहां पर ऐसे में अपना निवास स्थान कैसे में बनाये  तभी भगवान नारायण के मन में एक लीला करने का विचार आया और भगवान विष्णु ने एक नन्हे बालक का रूप लेकर जोर-जोर से रुदन  करना प्रारंभ कर दिया  जब माता पार्वती ने यह दृश्य देखा तो वे उस बालक को चुप कराने का प्रयास करने लगे|
परंतु वह बालक चुप नहीं हो रहा था उसके बाद माता पार्वती ने उस बालक को लेकर जैसे ही अंदर प्रवेश किया भगवान भोलेनाथ श्री हरि की लीला को समझ गए उन्होंने माता पार्वती से कहा कि इस बालक को यहीं पर छोड़ दो यह अपने आप चला जाएगा परंतु माता पार्वती ने भगवान शिव की बात नहीं मानी और उस बालक को लेकर अपने कक्ष में सुलाने के लिए अंदर ले गई |
जब वह बालक सो गया उसके बाद माता पार्वती उस कक्ष से बाहर आ गई माता पार्वती के बाहर आते ही श्री हरि ने अपनी लीला करनी प्रारंभ कर दी उन्होंने उस कक्ष में दरवाजे को अंदर से बंद कर दिया और जब भगवान शंकर अपने स्थान को लौटे तो दरवाजा बंद पाया|
 उसके बाद भगवान श्री हरि ने अंदर से कहा की आपका यह स्थान मुझे बहुत अच्छा लगा अब मैं यही रहूंगा और आप यहां से चले जाओ उसके बाद भगवान भोलेनाथ वहां से चले गए और यह स्थान भगवान विष्णु का हो गया तब  से भगवान विष्णु यहीं पर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं
 बद्रीनाथ में स्नान करने के लिए 5 कुंड हैं जिनमें
तप्त कुंड
 नारद कुंड
 सत्य पथ कुंड
 त्रिकोण कुंड
 मानुषी कुंड
बद्रीनाथ धाम में दर्शन के लिए 5 शिलाएं हैं जिन्हें देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से आते हैं उन 5 शिलाएं  के नाम इस प्रकार हैं
गरुड़ शीला
 नारद शीला
 मार्कंडेय शीला
 नृसिंह शीला
 ब्रह्म कपाल शीला
पुराणों में वर्णित बद्रीनाथ धाम में 5 धाराओं का वर्णन मिलता है इन में स्नान करने से व्यक्ति के कष्ट दूर हो जाते हैं एवं इस जल को आचमन करने का विशेष महत्व बताया गया है 5 धाराओं के नाम इस प्रकार हैं
कूर्म धारा
 प्रह्लाद धारा
इंदु धारा
 उर्वशी धारा
 भृगु धारा
बद्रीनाथ धाम में कुछ प्रमुख गुफाओं में से गणेश गुफा और व्यास गुफा भी है जिसमें व्यास जी ने और गणेश जी ने पुराण लिखे थे इन दो गुफाओं के अलावा भी यहां अन्य गुफाएं हैं
  मुचकुंद गुफा
 गरुड़ शीला गुफा
 राम गुफा
 गणेश गुफा
 व्यास गुफा

Adibadri | आदिबदरी

आदि बद्री मंदिर कर्ण प्रयाग में स्थित है आदि बद्री में 16 छोटे-छोटे मंदिर स्थापित है जो अत्यधिक प्राचीन है एवं उनकी स्थापना लगभग गुप्त काल में की गई थी यहां पर जो छोटी-छोटी मंदिरे स्थापित की गई हैं वह छोटे-छोटे चबूतरो पर बनाई गई हैं
 इसके साथ-साथ इन मंदिरों की ऊंचाई भी अलग अलग है यहां पर जो मुख्य मंदिर है वह भगवान विष्णु का मंदिर है जहां पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित की गई है आदिबद्री में भगवान विष्णु की जो प्रतिमा है वह काले रंग के पत्थर से निर्मित है आदि बद्रीनाथ भगवान विष्णु को ही कहा गया है भगवान आदिबद्री को बहुत ही प्राचीन माना गया है

Bhavishybadri | भविष्यबद्री

भविष्यबद्री का मंदिर बद्रीनाथ मोटर मार्ग जोशीमठ से 25 कि.मी की दुरी पर स्थित है  जोशीमठ से 18 कि.मी दूर सलधार और सलधार से  4 कि.मी की खड़ी चढ़ाई चलने के बाद सुबेन नामक गाँव है इसी गाँव में भविष्यबद्री की मंदिर स्थापित है
 ऐसा उल्लेख मिलता है की अगस्त्य मुनि द्वारा भगवान् विष्णु की आराधना इसी स्थान पर की थी तब भगवान् विष्णु ने अगस्त्य मुनि से कहा की जब घोर कलयुग में मनुष्यों द्वारा  बद्रीनाथ में जाना असंभव हो जायेगा उसके बाद बद्रीनाथ की पूजा भविष्य बद्री में ही होगी

Vridhbadri | वृद्धबद्री

वृद्धबद्री बद्रीनाथ रोड पर जोशीमठ से 7 कि,मी , की दुर ऐनिमथ नामक गाँव  पर स्थित है इस मंदिर की उचाई समुद्र तल से 1380 मीटर है  यहाँ पर भगवान् विष्णु की प्रतिमा एक वृद्ध व्यक्ति की तरह दिखाई पड़ती है इसलिए भगवान् विष्णु के इस मंदिर को वृद्ध बद्री के नाम से जाना जाता है
 ऐसा मन जाता है  की नारद जी द्वारा भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने के लिए यहाँ पर तपस्या की गयी थी तब भगवान् विष्णु ने नारद की तपस्या से खुश होकर एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में नारद जी को दरसन दिए थे पौराणिक कथाओ में कहा गया है की विश्वकर्मा  जी ने बद्री नाथ  जी की मूर्ति बनाई थी  और यही पर पूजा की थी
 कलयुग प्रारम्भ होते ही भगवान् विष्णु खुद यहाँ से बद्रीनाथ चले गए थे उसके बाद आदि गुरु शंकराचार्य जी ने नारद कुंड में आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त मूर्ति को बद्रीनाथ में स्थापित किया था |
Badrinath Temple

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